मेरी माँ............................
नत होकर मादर-ऐ-कुचे से निकला,
मुझे न पता था, कि रुसवा हे जिन्दगी,
मै फ़िर न लोटकर आ पाउँगा,
लेकिन मेरी माँ खड़ी है चौखट पर वही,
मुझे पता होता कि मै फ़िर न आऊंगा,
तो शायद चूम लेता, मै हथेली उनकी,
दो पल प्यार के और देख लेता उनको,
थोड़ा खाने पर थोड़ा घुमने पर और लड़ लेता,
मुझे न पता था, वो यु ही खड़ी रहेगी,
नही तो अन्दर करके जाता उनको,
- लेकी मेरी माँ खड़ी है, चौखट पर वही...........................
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