शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

ये घर...................................... मेरा तुम्हारा सबका घर, अजीबो - गरीब कहानी कहता हे घर, एक झत चंद दीवारों से मिलकर बनाया हे घर, क्या इसी को कहते हे घर, या परिवार से मिलकर बनता हे घर, उठाया मुहं चले गए हम, उठाया मुहं आ गए हम, क्या इसी को कहते हे घर, कितना आसन हे कहना घर, उतना ही मुश्किल हे चलाना घर, दो अक्चरो से मिलकर बना हे घर, पर इसका अर्थ नही ढूंड पाया हे, ....... जिन्दगी का सफर ...............

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