गुरुवार, 13 अगस्त 2009
मेरी जान.........................
मेरी जान.........................
आज दिल को फ़िर करार आ गया हे,
वो न मिले परख्याल आ गया हे,
वो बलखा के चलना याद आ गया हे,
वो न मिले परख्याल आ गया हे...................
(1) वो उनका यु हसना, हंसकर लिपटना,
लिपटकर यु मुझसे आँखे चुराना,
मेरे दिल को भा गया हे...............,
वो न मिले परख्याल आ गया हे.......................
(२) उनका यु जानकर अनजान बनना,
मेरा दिल जलाकर, वो दुश्मन से मिलना,
मेरे जिस्म पर वो निशाँ आ गया हे,
वो न मिले परख्याल आ गया हे........................
(३) यु आख़िर मुझसे रूठकर जाना,
उन्ही राहो पर मेरा यु नज़रे बिछाना,
जिस राह से उनका यु चलकर जाना,
मेरे दिल में यु आग लागा गया हे.......................
वो न मिले परख्याल आ गया हे........................
आज दिल को फ़िर करार आ गया हे...................................
शनिवार, 8 अगस्त 2009
मेरी माँ............................
मेरी माँ............................
नत होकर मादर-ऐ-कुचे से निकला,
मुझे न पता था, कि रुसवा हे जिन्दगी,
मै फ़िर न लोटकर आ पाउँगा,
लेकिन मेरी माँ खड़ी है चौखट पर वही,
मुझे पता होता कि मै फ़िर न आऊंगा,
तो शायद चूम लेता, मै हथेली उनकी,
दो पल प्यार के और देख लेता उनको,
थोड़ा खाने पर थोड़ा घुमने पर और लड़ लेता,
मुझे न पता था, वो यु ही खड़ी रहेगी,
नही तो अन्दर करके जाता उनको,
- लेकी मेरी माँ खड़ी है, चौखट पर वही...........................
शुक्रवार, 7 अगस्त 2009
ये घर......................................
मेरा तुम्हारा सबका घर,
अजीबो - गरीब कहानी कहता हे घर,
एक झत चंद दीवारों से मिलकर बनाया हे घर,
क्या इसी को कहते हे घर,
या परिवार से मिलकर बनता हे घर,
उठाया मुहं चले गए हम,
उठाया मुहं आ गए हम,
क्या इसी को कहते हे घर,
कितना आसन हे कहना घर,
उतना ही मुश्किल हे चलाना घर,
दो अक्चरो से मिलकर बना हे घर,
पर इसका अर्थ नही ढूंड पाया हे,
....... जिन्दगी का सफर ...............
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